असीमा चटर्जी, भारत में रसायन विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उनके पहले जानकी आमल को यह वनस्पति और कोशिका विज्ञान उपाधि के क्षेत्र में मिल चुकी थी ।
असीमा चटर्जी का जन्म 23 सितंबर 1917 को कलकत्ता में हुआ था। कमला देवी व इन्द्र नारायण मुखर्जी उनके माता-पिता थे। असीमा ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से 1936 में कार्बनिक रसायन में स्नातक, उसके बाद पी.के.बोस के निर्देशन में डी.एस.सी की उपाधि प्राप्त की। 1940 में उन्होंने महिला कालेज कलकत्ता में रसायन विज्ञान के संस्थापक प्रमुख के रूप में काम करना शुरू किया। 1944 में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की 1944 में वो प्रवक्ता के रूप कार्यरत हुई। 1954 में वो विज्ञान विभाग में रीडर के रूप में नियुक्त हुईं जहां वह अंतिम समय तक रहीं।, 1972 में यूजीसी से अनुदान प्राप्त विशेष कार्यक्रम की संचालक रही। डां असीमा ने मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के पौधों के औषधीय गुणों का अध्ययन व जैवरसायन विज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया जिसमें प्रमुख शाखा थी अल्कालोइड्स, टरपेनोइड्स, और कार्बनिक रसायन। उनके सबसे उल्लेखनीय कार्य में विन्सा एल्कालोड्स पर शोध शामिल है। उनके चार सौ से ऊपर शोध पत्र प्रकाशित हुए। वह इंडियन नेशनल साइंस अकेडमी की अधयेता भी रहीं। यही उन्होने मारसीलिया माइनुटा नाम की एंटी ऐपिलैप्टिक दवा का निमार्ण किया जिससे मलेरिया निवारक दवाओं का निमार्ण हुआ। आज कोरोना के वैक्सीन बनाने में या कोरोना के नियंत्रण में उनकी दवा से भी मदद ली जा रही है। वेनेका अल्कोडिश को शोध के लिए चुना और कई गंभीर बिमारियों में इसके उपयोग को साबित किया। यह शरीर की कोशिकाओं में फैलकर कैंसर के फैलने की गति को काफी धीमा कर देता है।1961 में उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से ,1975 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। वह इंडियन साइंस कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गईं। उन्हें राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनित भी किया जिसे उन्होंने 1982 से मई 1990 तक सफलतापूर्वक निभाया।महान शोधकर्ता डॉक्टर असीमा 2006 में 90 साल की उम्र में इस दुनिया से चली गईं। डॉ असीमा चटर्जी की मौत के दस साल बाद गूगल ने उनको 2017 में 100वें जन्मदिवस पर डूडल बनाकर याद किया। डॉ असीमा चटर्जी भारतीय महिला छात्रों में विज्ञान के प्रति रूचि पैदा करने व इस क्षेत्र में अपनी भूमिका सुनिश्चित करने में प्रेरणास्रोत है।